كنت تقرؤني لكتبتك وبشفاهي محوتك لهجوتك حتى أضحكتك.. لمدحتك فأبكيتك.. لتوقف قلبي ولم يعف قلمي.. لسألتك وأجبتك. . لكن توهمني بأني لستك. . حتى رثتني زقزقتك.. وما أن أقرؤك أجدني تقرؤني لنجدتك لو أدري أنك تقرؤني كبد الحرف أذقتك.. لو لو تدري حين لم تعدني أني اسريت بسريري ياطبيبي و عدتك.. وحين ضاق صدرك بتعذيبي تمددت قربي و تنفستك لو تدري وأنت توجعني أني آهك ياحبيبي و قلتك..